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त्वाम॑ग्न आदि॒त्यास॑ आ॒स्यं१॒॑त्वां जि॒ह्वां शुच॑यश्चक्रिरे कवे। त्वां रा॑ति॒षाचो॑ अध्व॒रेषु॑ सश्चिरे॒ त्वे दे॒वा ह॒विर॑द॒न्त्याहु॑तम्॥

English Transliteration

tvām agna ādityāsa āsyaṁ tvāṁ jihvāṁ śucayaś cakrire kave | tvāṁ rātiṣāco adhvareṣu saścire tve devā havir adanty āhutam ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। आदि॒त्यासः॑। आ॒स्य॑म्। त्वाम्। जि॒ह्वाम्। शुच॑यः। च॒क्रि॒रे॒। क॒वे॒। त्वाम्। रा॒ति॒ऽसाचः॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। स॒श्चि॒रे॒। त्वे इति॑। दे॒वाः। ह॒विः। अ॒द॒न्ति॒। आऽहु॑तम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:1» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (कवे) समस्त साङ्गोपाङ्ग वेद के जाननेवाले (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वन् ! (आदित्यासः) बारह महीना जैसे सूर्य्य को वैसे विद्यार्थी जन जिन (त्वाम्) आपको (आस्यम्) मुख के समान अग्रगन्ता और (शुचयः) पवित्र शुद्धात्मा जन (त्वाम्) आपको (जिह्वाम्) वाणीरूप (चक्रिरे) कर रहे मान रहे हैं। तथा (अध्वरेषु) न नष्ट करने योग्य व्यवहारों में (रातिषाचः) दान के सेवनेवाले जन (त्वाम्) आपको (सश्चिरे) सम्यक् प्रकार से मिलते हैं। (त्वे) तुम्हारे होते (देवाः) विद्वान् जन ! (आहुतम्) सब ओर से ग्रहण किये हुए (हविः) भक्षण करने योग्य पदार्थ को (अदन्ति) खाते हैं। सो आप हमारे अध्यापक हूजिये ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे संवत्सर का आश्रय लेकर महीने मुख का आश्रय लेकर शरीर की पुष्टि जिह्वा के आश्रय से रस का विज्ञान यज्ञ को प्राप्त हो विद्वानों के सत्कार और उत्तम अन्न को पाकर रुचि होती है, वैसे आप्तशास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वानों को प्राप्त होकर मनुष्य शुभगुणलक्षणयुक्त होते हैं ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे कवेऽग्ने सूर्यमादित्यास इव यं त्वामास्यं शुचयस्त्वां जिह्वामिव चक्रिरेऽध्वरेषु रातिषाचस्त्वां सश्चिरे यस्मिन् त्वे वर्त्तमाना देवा आहुतं हविरदन्ति स त्वमस्माकमध्यापको भव ॥१३॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) अग्निवद्वर्त्तमान आप्त विद्वन् (आदित्यासः) द्वादश मासाइव विद्यार्थिनः (आस्यम्) मुखमिव प्रमुखम् (त्वाम्) (जिह्वाम्) वाणीम् (शुचयः) पवित्राः (चक्रिरे) कुर्वन्ति (कवे) सकलसाङोगपाङ्गवेदवित् (त्वाम्) (रातिषाचः) दानं सेवमानाः (अध्वेरेषु) अहिंसनीयेषु व्यवहारेषु (सश्चिरे) समवयन्ति (त्वे) त्वयि (देवाः) विद्वांसः (हविः) अत्तुमर्हम् (अदन्ति) आहुतम् समन्ताद्गृहीतम् ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा संवत्सरमाश्रित्य मासा मुखमाश्रित्य देहपुष्टिर्जिह्वां समाश्रित्य रसविज्ञानं यज्ञं प्राप्य विद्वत्सत्कार उत्तममन्नं प्राप्य रुचिश्च जायते तथाप्तानध्यापकानाश्रित्य मनुष्याः शुभगुणलक्षणा जायन्ते ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे संवत्सराच्या आश्रयाने महिने, मुखाच्या आश्रयाने शरीराची पुष्टी, जिह्वेच्या आश्रयाने रसविज्ञान, यज्ञामुळे विद्वानांचा सत्कार व उत्तम अन्नप्राप्तीने रुची निर्माण होते, तसे शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, विद्वानांच्या आश्रयाने माणसे शुभगुणयुक्त होतात. ॥ १३ ॥